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बिहार की राजनीतिक दिशा को बदलता पिछड़ा और दलित समुदाय

हिंदी

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  “ईश्वर जैसे बसे हुए हैं, धरती के कण-कण में।     हिंदी बसी हुई वैसे ही हिंदुस्तानी मन में।”                               - डॉ रोशन रवि

गोबर की पुनर्स्थापना https://rroshanravi.blogspot.com/2022/04/blog-post.html

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प्राचीन काल से ही गोबर हिंदुस्तानी संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, नए-नए आविष्कार होते गए वैसे-वैसे गोबर की महत्ता धीरे-धीरे कम होती चली गई। पहले जब आंगन मिट्टी का हुआ करता था, तब वहां झाड़ू देकर गोबर से पोतने के बाद ही पूजा-पाठ जैसे धार्मिक कार्य संपन्न किए जाते थे, लेकिन अब समय बदल गया है। मिट्टी का आंगन नहीं रह गया है। पक्के मकान के आंगन भी पक्के हो गए हैं, जिसे साफ करने के लिए केवल जल का प्रयोग किया जाता है, गोबर की महत्ता इस कार्य में अब कम होने लगी है। इससे इतर गोबर का उपयोग इंधन के रूप में किया जाता था, लेकिन ऊर्जा के अन्य स्रोतों के आ जाने के पश्चात गोबर का महत्व इस क्षेत्र में भी कम होने लगा। रासायनिक खाद के अधिकाधिक प्रयोग ने उर्वरक के रूप में भी गोबर के प्रयोग को प्रचलन से बाहर कर दिया। अब गोबर का प्रयोग केवल विशेषण के रूप में ही गाहे-बगाहे किया जाता है। प्राय: गुस्से में ही कोई व्यक्ति इस विशेषण का प्रयोग दूसरे व्यक्ति विशेष के लिए करता है।                            हिंदुस्तानी संस्कृति में गोबर की महत्ता धीरे-धीरे कम होने से हिंदुस्तान में सं

मुस्कुराता चेहरा https://rroshanravi.blogspot.com/2022/02/blog-post.html

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                                                जगह-जगह बहुत ऊंचाई पर टंगी तस्वीरों में दिखाई पड़ने वाला ये मुस्कुराता चेहरा आखिर इतना मुस्कुरा क्यों रहा है? क्या कभी आपने इस पर विचार किया है? अगर अब तक विचार नहीं किया, तो अब कीजिए और गहराई से सोचिए कि क्या ये सचमुच मुस्कुरा रहा है। जी नहीं ! ये  मुस्कुरा नहीं रहा है, बल्कि हँस रहा है, हम पर हँस रहा है, हमारी बेबसी पर हँस रहा है, हमारी लाचारी पर हँस रहा है, हमारी नाकामी पर हँस रहा है। यह एक ऐसे विजेता की मुस्कान है, जिसने अफवाहों के बल पर आवाम के दिलो-दिमाग पर विजय हासिल की है।यह एक ऐसे  व्यापारी की  मुस्कान है, जिसने झूठ के बल पर सत्ता हासिल करने के एक नायाब तरीके का इजाद किया है। यह एक ऐसे धार्मिक व्यापारी की मुस्कान है, जिसने धर्म के धंधे को अपने राजनैतिक मुनाफे के लिए इस्तेमाल किया। यह एक ऐसे मायावी मानव  की मुस्कान है, जिसने अपने झूठे आंसू से पूरे आवाम को सच में रुला दिया। यह एक ऐसे सुखी इंसान की मुस्कान है, जिसने अपने सुख के लिए पूरी आवाम को दुख के अथाह सागर में धकेल दिया। यह एक ऐसे सौदागर की मुस्कान है, जिसने अपने फायदे के लिए आ

खगड़िया की बोली (ठेठ हिंदी) https://rroshanravi.blogspot.com/2022/01/blog-post.html

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खगड़िया की बोली (ठेठ हिंदी) भाषा वाक्यों से बनती है , वाक्य शब्दों से और शब्द ध्वनियों से । ध्वनियों पर उच्चारण भिन्नता का प्रभाव पड़ता है , उच्चारण भिन्नता का कारण भौगोलिक , सांस्कृतिक , राजनीतिक , आर्थिक , समाजिक , ऐतिहासिक इत्यादि हो सकता है । उच्चारण की भिन्नता से शब्दों में भिन्नता आती है और शब्दों की भिन्नता , वाक्यों में भिन्नता को जन्म देती है , जो अन्ततः एक बोली को दूसरी बोली से भिन्न बना देती है । यही कारण है कि एक ही भाषा से कई बोलियों का जन्म होता है और इन्हीं बोलियों में से कुछ बोलियाँ समृद्ध होकर एक नई भाषा के रूप में विकसित हो जाती है । इसलिए यह कहा जाता है कि भाषा का जन्म नहीं होता है , बल्कि एक भाषा से दूसरी भाषा का विकास होता है ।                                     संस्कृत , पालि , प्राकृत और अपभ्रंश को अवस्था से गुजरते हुए हिन्दी का विकास हुआ है । अप्रभंश के विभिन्न रूपों से ही हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं की उत्पत्ति हुई है। हिन्दी की बोलियों में ' बिहारी हिन्दी ' का विकास बिहार और आस - पास के क्षेत्र में हुआ है । ' बिहारी हिन्दी ' की तीन प्रमुख बोल

मनतंत्र type of democracy https://rroshanravi.blogspot.com/2021/05/type-of-democracy.html

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                         मनतंत्र                         प्राचीन काल का राजतंत्र आधुनिक काल में जनतंत्र के रूप में परिवर्तित हो गया। राजतंत्र में राजा का पुत्र ही राजा होता था, लेकिन जनतंत्र में राजा को जनता के बीच से ही चुना जाता है। जनतंत्र में जनता के बीच से ही राजा का चुनाव होने के कारण राजा जनता के प्रति अधिक संवेदनशील होते है और इसमें जनता के हितों का अधिकतम ख्याल रखा जाता है। बीसवीं शताब्दी तक दुनिया के लगभग सभी देशों में जनतंत्र अस्तित्व में आ गया था। इक्कीसवीं सदी जनतांत्रिक व्यवस्था के साथ अपने प्रारंभिक दौर से गुजर ही रहा था, तभी दुनिया के एक बड़े जनतंत्र के अंदर एक नया तंत्र विकसित हुआ, जिसे 'मनतंत्र' की संज्ञा दी गई। हालांकि ऐसे जनतंत्र में एक नाम मात्र का राज्यप्रमुख होता है, जबकि दूसरा वास्तविक राज्यप्रमुख होता है। राज्य का जो वास्तविक राज्यप्रमुख है उसे ही राज्य के संचालन की वास्तविक जिम्मेदारी दी गई है और राज्य संचालन के लिए उसे असीम शक्तियां और अधिकार प्रदान की गई है, लेकिन राज्य में जैसे-जैसे ‘जनतंत्र', ‘मनतंत्र’ के रूप में परिवर्तित होता गया, वैसे-वैसे

हिंदी विषय में रोजगार की संभावना Job prospects in Hindi https://rroshanravi.blogspot.com/2021/05/job-prospects-in-hindi.html

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 हिंदी विषय में रोजगार की संभावना https://rroshanravi.blogspot.com/2021/05/job-prospects-in-hindi.html "हिंदी से ही हिंद की पहचान है।                                        हिंद ग़र जिस्म है तो हिंदी उसकी ज़ान है।। "                                     हिंदी विषय संभावनाओं से भरा है। हिंदी विषय से यदि रोजगार के क्षेत्र में संभावनाओं की बात की जाए तो भारत के सबसे प्रतिष्ठित सेवाओं में से एक संघ लोक सेवा द्वारा आयोजित सिविल सर्विसेज परीक्षा में हिंदी अभ्यार्थियों का पसंदीदा विषय है। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान ,हिमाचल प्रदेश जैसे हिंदी भाषी प्रदेशों में हिंदी विषय से सेवाओं में चयनित होना अपेक्षाकृत आसान होता है। राज्य स्तरीय सिविल सेवाओं में भी हिंदी एक सफलता दिलाने वाले विषय के रूप में स्थापित हो चुका है। इसके साथ ही राजभाषा अधिकारी जैसे प्रतिष्ठित पदों पर इस विषय के माध्यम से चयन आसान हो जाता है। हिंदी जुड़ाव हिंदुस्तानी आवाम के हृदय से है इसलिए इसे बोलना और समझना आसान है, पढ़ना आसान है यदि किसी भी विषय को रूचि पूर्ण ढंग से पढ़ते हैं, तो उस वि

सवाल जबाव the real situation of Biharhttps://rroshanravi.blogspot.com/2021/05/blog-post.html

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सवाल जबाव the real situation of Bihar   https://rroshanravi.blogspot.com/2021/05/blog-post.html सवाल-जवाब जहां कल था, खुशियों का बसेरा। वहां आज है, गमों का अंधेरा।। जनता का यह सवाल है सुशासन से? क्या विकास होगा सिर्फ भाषण से? क्या बदली जाएगी बिहार की तस्वीर? या बेकारी ही बनेगी जनता की तकदीर? जवाब आया सुशासन से अकड़ कर। क्यों बैठे हो अपने पैसे पकड़ कर।। अधिकारियों और मंत्रियों को पैसा खिलाओ। और फिर अपना, मनचाहा फल पाओ।। जनता ने कहा 'पैसा कहां से आएगा सरकार?' क्या रोजगार के लिए बेच दें घर-बार? क्या इसलिए हमने आपको दिया था वोट? रोजगार के बदले मांगें आप हमसे नोट? तुम्हारे कहने से कुछ फर्क नहीं पड़ता है सुशासन को। दम है तो हिला कर देख लो मंत्री के आसन को।। हमें मिला है चुनाव में पूर्ण बहुमत। किसी की सुनने की क्या है जरूरत? जो मर्जी में करूं मेरा कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। नींव बहुत मजबूत है इसलिए सत्ता से उखाड़ नहीं सकता।। चुनाव के पैसे मैं कहां से लाऊंगा? इसके लिए अधिकारियों को ही तो मोहरा बनाऊंगा।। फिर जब चुनाव का समय आएगा। यही पैसा असर दिखाएगा।। क्या हुआ गर बिहार विकास से महरूम रह

हिंदुस्तान में लॉकडाउन के गहराते प्रभावhttps://rroshanravi.blogspot.com/2020/12/post.html

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    हिंदुस्तान में लॉक डाउन के गहराते प्रभाव                                                                                                              "    सन्नाटा है सड़कों पर और लोगों में खामोशी।                                                        वीराने इस हालत का अब कहो कौन है दोषी।।"       कोविड-19 के संक्रमण से मौत का गमज़दा कोलाहल ना हो, इसीलिए यह सन्नाटा और खामोशी हमारे देशवासियों के लिए नितांत आवश्यक है। हमें अपने सुरक्षित भविष्य के लिए हमें खुद लॉक डाउन का सख्ती से पालन करना होगा तथा अन्य लोगों को भी संचार माध्यमों के द्वारा लॉक डाउन का पालन करने के लिए जागरूक बनाना होगा। सोशल डिस्टेंस बनाए रखना होगा ,साथ ही साथ वे सारे जरूरी एहतियात बरतने होंगे जो सरकारी आदेशों और निर्देशों में शामिल होगा।                कोविड-19 को रोकने के लिए सरकार के द्वारा जो राष्ट्रीय स्तर पर लॉक डाउन किया गया है , उसने मानव सामुदाय को कई स्तरों पर प्रभावित किया है। लोग अपने अपने घरों में हैं तथा सड़कों पर वाहनों का आवागमन बंद है जिसके परोक्ष प्रभाव के रूप में हमें चारों तरफ स्वच्छता दि

ताजा खबरhttps://rroshanravi.blogspot.com/2020/07/blog-post.html

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                       ताजा खबर बिहार  की  खबर  है  यह‌  ताजा। ईमानदारों का बज रहा है बैंड बाजा।। भ्रष्टाचारी बोल रहे हैं जोर से। पुलिस भी डर रही है चोर से।। हाल देखकर यहां के सड़क का। एहसास होता है धरती पर नरक का।। बहुत खर्च होता है शिक्षा के विकास पर। पर शिक्षक ही रहते हैं प्राय: अवकाश पर।। पक्के मकान के लिए मिलती है इतनी सरकारी मदद। मकान तो क्या, झोपड़ी के लिए भी करना पड़े जद्दोजहद।। बिजली व्यवस्था तो है बहुत चुस्त-दुरुस्त। पर बिजली सप्लाई की रफ्तार ही हैं बहुत सुस्त।। अस्पताल के डॉक्टर तुरंत एक्शन में आ जाते हैं। चोट बाएं पैर में हो मगर, दाएं पर प्लास्टर चढ़ा जाते हैं।। बिहार में फैल चुकी है या हवा। मर्ज कोई भी हो पैसा है उसकी दवा।। विद्यालय के मध्यान भोजन का है यह हाल। भोजन कर बच्चे भाग जाते हैं तत्काल।। स्कूली छात्रा जो साइकल पा रही है। स्कूल से ज्यादा वो घर के काम आ रही है।। कानून का रखवाला दिन रात जागता है। मगर सिर्फ पैसे के पीछे भागता है।। न्याय पाने को जब लोग हिस्सा लेते हैं हड़ताल में। पुलिस के डंडे से आधे पहुंच जाते अस्पताल में।। रोजगार के लिए रिक्तियां तो निकलती है समय से।

खामोशी में हलचल,https://rroshanravi.blogspot.com/2020/05/blog-post.html

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                  खामोशी में हलचल                  खामोश सड़कों से 'भागो भागो भागो ... पुलिस आ गई भागो' चिल्लाता हुआ टप्पु गली की ओर भागा। इतना सुनते ही वहां खड़े दूसरे लोग बीना कुछ देखे ही दूसरी तरफ की एक गली में घुस जाते हैं। डंडा लहराता हुआ एक सिपाही सड़क पर दौड़ता हुआ आ रहा है। बेवजह घूमने वाला टप्पू तो भाग जाता है, लेकिन सब्जी खरीदने के लिए बाजार जाने वाला टप्पू का दोस्त सिपाही की पकड़ में आ जाता है। सिपाही जी को जब पूरा यकीन हो जाता है कि वो बेवजह नहीं घूम रहा है, तब कुछ हिदायतों के साथ उसे छोड़ देता है।              टप्पू हांफता हुआ अपने घर पहुंचता है। दरवाजे की कुंडी बंद कर वह जैसे ही बैठता है ,उसकी सांसें बहुत तेजी से ऊपर-नीचे होने लगती है। टप्पू की हांफती हुई आवाज से बरामदे के पास सो  रही मां की नींद खुल जाती है। मां पूछती है- मां-क्या हुआ ?काहे हांफ रहा है? टप्पू-कुछ नहीं। मां-कुछ नहीं हुआ तो हांफ काहे रहा है? कहीं बाहर तो नहीं गया था? टप्पू-हां, मन नहीं लग रहा था, इसीलिए बाहर गया था? मां-घर में इतने सारे लोग हैं, सबको मन लग रहा है, लेकिन तुम्हारा ही

लॉक डाउन पर सवाल, https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/blog-post29.html

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        ‌‌‌‌‌‌        लॉक डाउन पर सवाल                            सन्नाटा है सड़कों पर और लोगों में खामोशी।  वीराने इस हालत का अब कहो कौन है दोषी? --रोशन रवि (असिस्टेंट प्रोफेसर के.डी.एस. कॉलेज, गोगरी, खगड़िया)

हम क्या कम हैं?,The real story of Criminalization of politics and politicization of criminal,https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/real-story-of-criminalization-of28.html

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https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/real-story-of-criminalization-of28.html                                                                                                          हम क्या कम हैं?  The real story of Criminalization of politics and politicization of criminal                                     'नेताजी अमर रहे... हिंदुस्तान जिंदाबाद... मुरारी गंज की जनता जिंदाबाद... जिंदाबाद, जिंदाबाद' की गूंज से समस्त मुरारी गंज की फ़िजा गुंजायमान है। आज मुरारी गंज के नए विधायक जयकांत सिंह का नागरिक अभिनंदन है। फूल मालाओं से लदे नेताजी के चेहरे से असीम खुशी की झलक दिखाई पड़ती है, जो छिपाए नहीं छिप रही। पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़े और विजयी भी हुए और वह भी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर। जय कांत ने कई बार विधायक रहे रंजीत सिंह को चुनाव में परास्त किया है। जयकांत इस  जीत का श्रेय मन ही मन अपने जात-बिरादरी के लोगों के साथ-साथ मदन सिंह को देते हैं। अभी राजनीति के कच्चे खिलाड़ी हैं, इसलिए ऐसा सोच रहे हैं,वरना नेता लोग किसी भी कार्य का श्रेय खुद लेते हैं, किसी को

जिन्दगी की बंदगी, https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/blog-post18.html

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                    जिन्दगी की बंदगी            महानगरों में जिंदगी बहुत तेज दौड़ती है। सबसे बड़ी बात इन तेज दौड़ती जिंदगियों में ब्रेक ही नहीं होती, इसलिए यह रुकती नहीं, लगातार चलती रहती है । विक्रम भी शहर में ही रहता है, इसीलिए उसकी जिंदगी में भी ठहराव नहीं है। सुबह में ऑफिस जाना और फिर शाम में वापस घर आ जाना ही विक्रम के लिए जिंदगी है। विक्रम एक मल्टीनेशनल कंपनी के  बड़े पद पर कार्यरत है और उसकी तनख्वाह किसी भी आम सरकारी नौकरी से बहुत ज्यादा है। विक्रम शहर में रहता है, इसलिए इतने बड़े पद पर होने के बावजूद उसे पड़ोसी भी नहीं जानते हैं। किसी गांव में होते तो शायद उसके नाम का डंका बजता। विक्रम गांव का ही रहने वाला है, लेकिन बरसों हो गए गांव का मुंह देखे।                 विक्रम सरकारी नौकरी करना चाहता था और अधिकारी बनना चाहता था, लेकिन सरकारी नौकरी में तो गांव-गांव की खाक छाननी पड़ती है। मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब लग जाने पर महानगरों में ही रह कर काम करना पड़ता है। विक्रम को पावर चाहिए था, पैसे की अहमियत उसके लिए उतनी ज्यादा नहीं थी, इसलिए वह सरकारी अधिकारी बनना चाहता था। उसके

हमारी हिंदी,https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/blog-post16.html

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                        हमारी हिंदी                        हिंदी से ही हिंद की पहचान है।      हिंद ग़र जिस्म है तो, हिंदी उसकी जान है।। - डॉ रोशन रवि (असिस्टेंट प्रोफेसर , हिंदी विभाग, के.डी.एस. कॉलेज, गोगरी, खगड़िया)          https://rroshanravi.blogspot.com

टूटती ख्वाहिशें, बदलता इंसान,https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/blog-post15.html

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                                टूटती ख्वाहिशें, बदलता इंसान                     ' सिकंदर, ओ सिकंदर, झांक ले, झांक ले ,झांक ले ,दिल के अंदर...'महज एक फिल्मी गाने की लाइनें नहीं है, बल्कि दसवीं कक्षा में पढ़ने वाले सिकंदर को अपनी गरीबी के अंदर झांकने के लिए मजबूर करने वाले रसूखदारों का फरमान भी है। दो वक्त की रोटी का इंतजाम ना कर पाने वाला परिवार यदि किसी तरह से अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर समाज के बड़े ओहदे पर ले जाने  की चाहत रखता है, तो यह समाज के तथाकथित बड़े कहे जाने वाले लोगों के लिए चिंता का विषय होना आम बात है।यह  मानवीय स्वभाव भी है और आजकल के समाज में यह कह कर इसे उचित भी ठहराया जाता है कि जब किस्मत ने ही उसे गरीब बना दिया है, तो हम उसमें क्या कर सकते हैं? किसी भी ग़लत चीज पर किस्मत का ठप्पा लगाकर उसे सही ठहराना और उसे शोषण के एक हथियार के रूप में अपनाए जाने का रिवाज हमारे समाज में पुराना है।             दसवीं कक्षा के छात्र विश्व विजेता सिकंदर के बारे में थोड़ा-बहुत जान ही लेते हैं और यही ज्ञान इस सिकंदर को सहपाठियों में मजाक का पात्र बना देता है। सिकंदर के