टूटती ख्वाहिशें, बदलता इंसान,https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/blog-post15.html

                               टूटती ख्वाहिशें, बदलता इंसान

   

                'सिकंदर, ओ सिकंदर, झांक ले, झांक ले ,झांक ले ,दिल के अंदर...'महज एक फिल्मी गाने की लाइनें नहीं है, बल्कि दसवीं कक्षा में पढ़ने वाले सिकंदर को अपनी गरीबी के अंदर झांकने के लिए मजबूर करने वाले रसूखदारों का फरमान भी है। दो वक्त की रोटी का इंतजाम ना कर पाने वाला परिवार यदि किसी तरह से अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर
समाज के बड़े ओहदे पर ले जाने  की चाहत रखता है, तो यह समाज के तथाकथित बड़े कहे जाने वाले लोगों के लिए चिंता का विषय होना आम बात है।यह  मानवीय स्वभाव भी है और आजकल के समाज में यह कह कर इसे उचित भी ठहराया जाता है कि जब किस्मत ने ही उसे गरीब बना दिया है, तो हम उसमें क्या कर सकते हैं? किसी भी ग़लत चीज पर किस्मत का ठप्पा लगाकर उसे सही ठहराना और उसे शोषण के एक हथियार के रूप में अपनाए जाने का रिवाज हमारे समाज में पुराना है।

            दसवीं कक्षा के छात्र विश्व विजेता सिकंदर के बारे में थोड़ा-बहुत जान ही लेते हैं और यही ज्ञान इस सिकंदर को सहपाठियों में मजाक का पात्र बना देता है। सिकंदर के सहपाठी सिकंदर को हमेशा चिढ़ाते रहते हैं और कहते हैं कि एक वो सिकंदर था, जो राजा  था और एक ये सिकंदर है, जो भिखारी है। दूसरा सहपाठी आग में घी डालते हुए कहता कि शायद इसके बाप ने सोचा होगा कि यह सिकंदर के जैसा कभी राजा तो बन नहीं पाएगा तो इसका नाम ही सिकंदर रख देते हैं, हा.. हा.. हा..। तीसरे सहपाठी ने इस व्यंग को आगे बढ़ाते हुए कहा कि इसके बाप ने तो गलत कर दिया, सिकंदर के बारे में तो सभी को पता भी नहीं है, कि वह राजा था कि क्या था? सिकंदर के बदले इसका नाम डायरेक्ट  'राजा' रख देते तो अच्छा होता हा.. हा.. हा....। धीरे-धीरे सिकंदर को भी अपने नाम को लेकर खिन्नता का भाव आ गया  कि उसके पिताजी ने ये नाम रखा ही क्यों? कोई और नाम होता तो कम से कम अपने सहपाठियों के बीच मजाक का पात्र तो नहीं बनते। सिकंदर को अभी सामाजिक अनुभव नहीं है, इसीलिए उसे पता नहीं चल पाता है कि नाम कोई भी होता, तब भी वह मजाक का पात्र बनता, क्योंकि मजाक उसके नाम का नहीं उड़ाया जा रहा है ,बल्कि मजाक उसकी गरीबी का उड़ाया जा रहा है।
                सिकंदर के पिता गरीब हैं, लेकिन उनमें सामाजिक अनुभव कूट-कूट कर भरा हुआ है। उन्हें पता है कि परंपरावादी समाज में लोगों के द्वारा दिलाए जाने वाला गरीबी का एहसास सिकंदर को सफल नहीं होने देगा। दसवीं पास करने के बाद सिकंदर को गांव से बहुत दूर अजनबी शहर में पढ़ने के लिए भेज दिया जाता है, जहां ना कोई सिकंदर को जानता है और ना ही उसकी आर्थिक परेशानियों से कोई वाक़िफ है। सिकंदर की पढ़ाई के लिए उसके पिता किसी तरह पैसे भेजते रहते हैं, ताकि उसकी पढ़ाई में कोई बाधा उत्पन्न ना हो। गांव के बुजुर्ग आज भी अपने बच्चे को पढ़ा-लिखा कर डॉक्टर अथवा इंजीनियर बनाने की ही ख्वाहिश रखते हैं। सिकंदर इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करने के बाद सरकारी नौकरी के लिए तैयारी शुरू कर देता है।

                                                                                 2.

            सिकंदर कई असफलताओं के बाद सफल होता है और अंतिम रूप से पी. डब्ल्यू. डी. में सिविल इंजीनियर के रूप में चयनित होता है। इस पद पर अतिरिक्त आमदनी का स्रोत बहुत ज्यादा है, लेकिन ईमानदारी का भी अपना जलवा है, जो सिकंदर को अपनी ओर आकर्षित करता है। आर्थिक तंगी को सिकंदर के पिता ने झेला था, सिकंदर ने नहीं। सिकंदर को तो पढ़ाई के लिए समय पर पैसे मिल ही जाते थे। सिकंदर को आर्थिक तंगी का अनुभव भले ही न हो, परन्तु गांव में रहते हुए सिकंदर ने अपनी गरीबी का मजाक बनते हुए देखा था, इसीलिए वह किसी तरह बड़ा बनना चाहता था, शायद मजाक बनाने वाले लोगों को सबक सिखाने के लिए। शहर की आबोहवा में सिकंदर का मिजाज बदलता है। सिकंदर अब भी बड़ा ही बनना चाहता है ,लेकिन लोगों को सबक सिखाने के लिए नहीं, बल्कि समाज में बदलाव लाने के लिए। सिकंदर का ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ होना इसी सोच का परिणाम है।
                 सिकंदर के पिता के लिए बड़ा होने का मतलब धनवान होना है। सिकंदर का पिता गरीबी को यह समझ कर झेलता चला गया कि सिकंदर जब पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बनेगा, तो उसकी सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी और उनकी जिंदगी भी बड़े लोगों की तरह आराम से बीतेगी। सिकंदर ईमानदार था। ईमानदारी के पैसे से बड़े बंगले नहीं खरीदे जाते, बड़ी गाड़ियां नहीं खरीदी जाती, इसलिए सिकंदर के पिता की ख्वाहिशें टूटती  है, लेकिन उसे बेटे के बड़े पद पर होने की तसल्ली  है, साथ ही इससे जुड़ा हुआ सम्मान का भाव भी जो उसे रोमांचित करता है। वह अपनी ख्वाहिशों को दबा देता है।
                 सिकंदर के पिता की ख्वाहिशें बड़ी है, लेकिन इसे पूरा करने के लिए वह सिकंदर पर घूस लेने के लिए दबाव नहीं बनाता है। सिकंदर अब उस पद पर है, जहां पिता का दबाव आए ना आए लेकिन, अन्य कई लोगों का दबाव आना स्वाभाविक है, क्योंकि उसके निर्णय से अन्य लोगों का हित प्रभावित होता है। उनकी ईमानदारी अन्य लोगों को बेईमान होने से रोकती है, इसलिए उनके प्रत्यक्ष और परोक्ष विरोधियों की संख्या बढ़ती चली जाती है।
               सिकंदर के माता-पिता की गरीबी तो दूर हो जाती है ,लेकिन गरीबी के कारण धीरे-धीरे दुर्बल होते शरीर को कई बीमारियां जकड़ लेती हैं। कभी चिंता से बीमारी होती है, तो कभी बीमारी से चिंता होती है। माता-पिता की घातक बीमारियों के इलाज के खर्चे और अपने ओहदे की गरिमा को बनाए रखने के लिए किए जाने वाले खर्चे को सरकारी तनख्वाह से पूरा कर पाना मुश्किल होता जा रहा था, हालांकि सरकार के द्वारा सरकारी पदाधिकारियों को सुविधाएं मुहैय्या कराई जाती है, जो नाकाफ़ी है। सिकंदर की दुखती रग को अब दवाया जाने लगा और उसके हालात को समझते अन्य लोगों के द्वारा उस पर घूस लेने के लिए मजबूर किया जाने लगा।  इंसान परिस्थितियों के बस में होता है, परिस्थितियां इंसान के बस में नहीं होती। जिस गलत काम को करने के लिए पिता ने मजबूर नहीं किया, उसी गलत काम को करने के लिए पिता की बीमारी ने मजबूर कर दिया। इंसान जो काम अपने लिए नहीं करता है, वही काम अपनों के लिए करना पड़ता है।
                  सिकंदर का जमीर घूस लेने की इजाजत नहीं देता है, लेकिन वह हालात के आगे विवश हैं। जैसे ही घूस लेने के लिए सिकंदर का हाथ आगे बढ़ता है, उसके दफ्तर के सन्नाटे को भंग करते हुए कई लोग जमघट लगा देते हैं, रंग बिरंगी गाड़ियां खड़ी हो जाती है और साथ ही सिकंदर साहब की जी-हुजूरी भी।पहली बार आजीवन ईमानदार होने की ख्वाहिश टूटती है।
             सिकंदर के मन में पद से इस्तीफा देने का ख्याल  आता है, लेकिन कोई समस्या अंतिम नहीं होती है। समस्याओं का एक चक्र होता है, जो आजीवन चलता रहता है और यह मृत्यु के साथ ही समाप्त होता है। सिकंदर सोचता है कि आने वाली समस्याओं का समाधान भी पैसे से ही होगा, पद से त्यागपत्र देने से नहीं। यही सोच कर सिकंदर अपने पद का त्याग ना कर, अपनी ईमानदारी का त्याग कर देता है।

                                                                                  3.

             अब सिकंदर साहब के पास बड़ी गाड़ी है, बड़े बंगले हैं। फैमिली डॉक्टर है, जो माता-पिता के स्वास्थ्य देखभाल के लिए रखे गए हैं। लहजे में थोड़ी अकड़ आ गई है, जो अतिरिक्त आमदनी से उत्पन्न हुई है। सिकंदर की सरकारी महकमे में काफी अच्छी पकड़ हो गई  है, इसलिए घूसखोरी का धंधा फल-फूल भी रहा है। यदि ईमानदार अधिकारी की इमानदारी से किसी बेईमान आदमी को  नुकसान होता भी है ,तो वह सह लेता है, लेकिन यदि किसी बेईमान अधिकारी से किसी बेईमान आदमी को नुकसान होता है, तो यह बेईमान आदमी के लिए असह्य हो जाता है। सिकंदर घूसखोर था, लेकिन घूसखोर होने का अब तक आरोप नहीं लगा था। घूसखोरी का धंधा भी भ्रष्टाचारियों के लिए एक व्यापार की तरह होता है, जिसमें एक नियम चलता है-'जैसा काम ,वैसा दाम'। दाम लेकर काम नहीं करना सिकंदर को महंगा पड़ा और उस पर घूसखोरी का आरोप लग गया।
               सिकंदर के खिलाफ कई सबूत मिले और उस पर लगा आरोप भी साबित हो गया। सिकंदर अब सलाखों के पीछे हैं। सिकंदर की ख्वाहिशें फिर टूटती है। सिकंदर अपने अतीत को याद करते हुए सोचता है- 'जब ख्वाहिशें टूटती है, तब इंसान बदलता है, या जब इंसान बदलता तब ख्वाहिशें टूटती है।'

          --डॉ रोशन रवि
(असिस्टेंट प्रोफेसर, के.डी.एस. कॉलेज, गोगरी, खगड़िया)

https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/blog-post15.html

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मुस्कुराता चेहरा https://rroshanravi.blogspot.com/2022/02/blog-post.html

लॉक डाउन पर सवाल, https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/blog-post29.html

हिंदी विषय में रोजगार की संभावना Job prospects in Hindi https://rroshanravi.blogspot.com/2021/05/job-prospects-in-hindi.html

जिन्दगी की बंदगी, https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/blog-post18.html

खामोशी में हलचल,https://rroshanravi.blogspot.com/2020/05/blog-post.html

हम क्या कम हैं?,The real story of Criminalization of politics and politicization of criminal,https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/real-story-of-criminalization-of28.html

बिहार की राजनीतिक दिशा को बदलता पिछड़ा और दलित समुदाय, Backward and Dalit Communities changing the political direction of Bihar,https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/backward-and-dalit-communities-changing-political-diraction.html?m=1

कहीं वो कोरोना वायरस संक्रमित तो नहीं था?http://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/blog-post.html

सवाल जबाव the real situation of Biharhttps://rroshanravi.blogspot.com/2021/05/blog-post.html

भारत में लॉक डाउन, lockdown in India, https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/lockdown-in-india.html