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गोबर की पुनर्स्थापना https://rroshanravi.blogspot.com/2022/04/blog-post.html

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प्राचीन काल से ही गोबर हिंदुस्तानी संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, नए-नए आविष्कार होते गए वैसे-वैसे गोबर की महत्ता धीरे-धीरे कम होती चली गई। पहले जब आंगन मिट्टी का हुआ करता था, तब वहां झाड़ू देकर गोबर से पोतने के बाद ही पूजा-पाठ जैसे धार्मिक कार्य संपन्न किए जाते थे, लेकिन अब समय बदल गया है। मिट्टी का आंगन नहीं रह गया है। पक्के मकान के आंगन भी पक्के हो गए हैं, जिसे साफ करने के लिए केवल जल का प्रयोग किया जाता है, गोबर की महत्ता इस कार्य में अब कम होने लगी है। इससे इतर गोबर का उपयोग इंधन के रूप में किया जाता था, लेकिन ऊर्जा के अन्य स्रोतों के आ जाने के पश्चात गोबर का महत्व इस क्षेत्र में भी कम होने लगा। रासायनिक खाद के अधिकाधिक प्रयोग ने उर्वरक के रूप में भी गोबर के प्रयोग को प्रचलन से बाहर कर दिया। अब गोबर का प्रयोग केवल विशेषण के रूप में ही गाहे-बगाहे किया जाता है। प्राय: गुस्से में ही कोई व्यक्ति इस विशेषण का प्रयोग दूसरे व्यक्ति विशेष के लिए करता है।                            हिंदुस्तानी संस्कृति में गोबर की महत्ता धीरे-धीरे कम होने से हिंदुस्तान में सं