आखिर न्याय मिल ही गया,Real Story of Police Station,https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/real-story-of-police-station.html

              आखिर न्याय मिल ही गया

       Real Story of Police Station


            इंसाफ मांगता हुआ एक युवक थाने पहुंचता है। गांव में पंचायत है और वहां मुफ्त में न्याय भी मिल सकता है, लेकिन फिर भी लोग न्याय के लिए पुलिस स्टेशन ही जाते हैं। समय बदल गया है, लोग अब सस्ती चीजों में विश्वास नहीं रखते हैं, बल्कि महंगी चीजों में विश्वास रखते हैं, और यही कारण है कि हमारे समाज में महंगी न्याय व्यवस्था में लोगों की आस्था दृढ़ होती जा रही है। थाने में न्याय व्यवस्था महंगी ही सही ,लेकिन मिलती जरूर है। महंगी चीजें टिकाऊ भी होती है और यह न्याय व्यवस्था महंगी होने के कारण लंबे समय तक चलती रहती है। यह बात अलग है कि एक पक्ष को न्याय देने के क्रम में दूसरे पक्ष के साथ अन्याय हो जाता है। कभी-कभी तो दोनों पक्षों को न्याय देने के चक्कर में अनजाने में ही दोनों पक्षों के साथ आर्थिक अन्याय हो जाता है।

               युवक घायल है। उसके सर से खून निकल रहा है। जख्म गहरा नहीं है , लेकिन खून से रंगे हुए सफेद कमीज से गहरे जख्म होने का भ्रम पैदा होता है। न्याय की मांग करता हुआ युवक थाने में बैठे एक साहब से कहता है-
  युवक-साहेब, सुरेंदर ने मेरा कपाड़ फोड़ दिया और कहा कि थाना गया तो जान से मार देंगे।
साहेब-ई सुरेंदर कौन है और उ काहे तुम को मारा ?
युवक-गांव का दबंग व्यक्ति है साहब। किसी को कुछ नहीं समझता है। बिना मतलब के हमको मारा है साहेब।
साहेब(गुस्से में)-तुम हमको सिखाता है, तुम कुछ नहीं किया और उ तुम्हारा कपार फोड़ दिया। सही-सही बताओ क्या हुआ?
 युवक (थोड़ा डरकर)-साहब, हम भी गाली दिए थे उसको।
साहब-ठीक है हम गांव जाकर जांच करेंगे। अगर तुम  गलती किए हो तो तुमको भीतर कर देंगे। जाओ हॉस्पिटल में पट्टी करवा लो।
            युवक के जाने पर साहब उस गांव के चौकीदार से पूछता है कैसा पार्टी है ये। चौकीदार ने बताया कि पार्टी तो दमदार नहीं है लेकिन ज्यादा डराएंगे तो पैसे का जुगाड़ करके दे ही देगा।बाहर ही दयालु है, सब कुछ सम्हाल लेगा।
           युवक के बाहर निकलने पर थाने के गेट पर खड़ा दयालु सिंह मिलता है। नाम के अनुसार ही इनकी दया दृष्टि इस क्षेत्र के समस्या से ग्रसित हर इंसान पर पड़ती रहती है। ये ब्लॉक ,अनुमंडल से लेकर थाना तक की हर छोटी-बड़ी समस्याओं को सुलझाते हैं और बदले में जीवन निर्वाह के लिए थोड़ी सी दक्षिणा भी ले लेते हैं।
          दयालु युवक की समस्या को सुनता है और उसके समाधान की तरकीब सुझाता हुआ कहता है-
 दयालु-सुरेन्दर ने आपके साथ गलत किया है।आपको न्याय जरुर मिलेगा और सुरेंदर का जेल जाना तय है। आप चिन्ता मत कीजिए। आप आदमी भले लग रहे हो, इसीलिए हम आपकी मदद करेंगे, वरना हमें तो छींकने की भी फुर्सत नहीं है।
युवक-हम जैसे गरीब आदमी का आप ही सहारा हैं बाबू ।कुछ कीजिए।
दयालु-हमको घटना के बारे में सही-सही बताओ?
युवक-आपसे झूठ क्या बोलेंगे बाबू! हम ने ही उसे एक थप्पड़ मारा था ,उसके बाद वह गुस्से में आकर हम पर लाठी चलाया और मेरा कपाड़ फूट गया।
दयालु-साहब को तो सब बात सच-सच बता दिये न?
युवक-नहीं, साहब से तो हम झूठ बोले। हम बोले कि हम गाली
दिए और वह हमें मारने लगा। साहब से बस इतना ही कहे। पूरा बात नहीं बताए।
दयालु-आप तो बहुत गलत कर दिए महाराज, झूठ काहे बोल दिए।
युवक-हम सोचे कि सच बोलेंगे तो साहब गुस्सा जाएंगे।
 दयालु- अब तो बहुत गड़बड़ हो गया। साहब जांच में जाएंगे और वहां पता चलेगा कि आपने ही पहले थप्पड़ मारा है, तो आप पर ही उल्टा मुकदमा हो जाएगा। साहब से झूठ बोलने का मतलब समझते हैं आप, सड़ जाइएगा जेल में कोई नहीं बचाएगा।
युवक-कपाड़ तो  मेरा ही फूटा है, फिर हम पर कैसे मुकदमा होगा?
दयालु-कपाड़ तो ऐसे ही फुटते रहता है। इसका यह मतलब थोड़े ही है कि आप साहब से झूठ बोल दीजिए। किसी का हाथ-पैर भी तोड़ दिजियेगा तो कुछ भी नहीं होगा, लेकिन साहेब गुस्सा गये तो सब कुछ हो जाएगा, समझे। कुछ लिख देंगे आप के खिलाफ, तो आप तो बर्बाद हो जाइएगा।
युवक (डर कर गिड़गिड़ाने लगता है)-अब आप ही कुछ कर सकते हैं बाबू ।इसका कुछ उपाय लगाइए नहीं तो हम तो बर्बाद हो जाएंगे।(कुछ सोच कर) कुछ ले दे कर मेरा काम करवा दीजिए।
दयालु (भड़क कर)-साहब घुस लेते हैं। आप कुछ से कुछ काहे बोल रहे हैं।
युवक-तो अब क्या करें?
दयालु-अभी आप बाहर चाय की दुकान पर बैठिए। हम पता करते हैं साहब का मूड कैसा है? अच्छा मूड होगा तो आपके लिए बात करेंगे।
     दो घंटे बाद दयालु थाने से बाहर आता है और युवक से कहता है कि साहब तो आप पर बहुत भड़क रहे थे ,लेकिन हम हाथ-पैर जोर कर किसी तरह साहब को मना लिए हैं। आप एक काम कीजिए ,दस हजार रुपए लेकर आइए। बाँकि हम संभाल लेंगे। आप पर कोई  केस नहीं होने देंगे। जाइए पैसे का इंतजाम जल्दी कीजिए, नहीं तो साहब का मूड कहीं बिगड़ गया तो लेनी का देनी पड़ जाएगा। युवक कहता है कि आपने तो कहा था कि साहब घुस नहीं लेते हैं। दयालु भड़कर कहता है कि अजीब गवाँर आदमी हैं आप। साहब  घूस नहीं लेते हैं न, लेकिन कागज पत्तर में पैसा लगता है कि नहीं। वह पैसा साहब देंगे कि आप दीजिएगा। एक तो काम करवा रहे हैं, ऊपर से खींच-खींच करते हैं। पैसा तो आज है, कल खर्च हो जाएगा। बाहर रहिएगा तो उससे ज्यादा कमा लीजिएगा। भीतर जाइएगा तो कै बरस जेल में  रहिएगा पता है आपको।
        युवक किसी तरह पैसे का इंतजाम करके दयालु को दे देता है और डरते-डरते दयालु से पूछता है कि अब तो कोई दिक्कत नहीं है ना ?अब तो कोई केस नहीं होगा हम पर? दयालु युवक के पीठ पर हाथ रख कर कहता है कि अब चिंता की कोई बात नहीं, लेकिन आपने साहब से झूठ बोलकर मामला को बहुत गंभीर बना दिया था। बस अब तुम्हारे लिए हमको तीन-चार दिन मेहनत करना पड़ेगा, लेकिन मुझे इस बात का संतोष है कि तुम्हें एक बड़ी मुसीबत से बचा लिए। दयालु युवक से पैसे लेकर उसे विदा करता है और थाने के अंदर आ जाता है। उस पैसे का बंदरबांट करने के बाद, अपना हिस्सा लेकर फिर आ जाता है नए मुर्गे को हलाल करने।
         थाने की महंगी, किंतु टिकाऊ न्याय व्यवस्था से फरियादी को तो न्याय मिल ही गया, साथ ही साथ साहेब ने त्वरित न्याय भी कर दिया।  थाने में साहेब को केस भी रजिस्टर नहीं करना पड़ा। गांव का दौरा भी नहीं करना पड़ा। बिना किसी मामले को मामला बनाकर मामले को सुलझा भी दिया गया। साथ ही साथ साहब को मेहनताना भी मिल गया और ईमानदारी भी पूरी निष्ठा के साथ बरकरार रही।
        युवक के मन में दयालु के प्रति कृतज्ञता का भाव भर गया। वह सोचने लगता है कि दुनिया में आज भी इंसान है ,जो मुसीबत के वक्त दूसरे इंसान की मदद करने के लिए हमेशा खड़े रहते हैं। बेचारा मेरे लिए चार-पांच दिन और मेहनत करेगा, लेकिन उसे मिलेगा क्या? कुछ नहीं। हम तो बस यही दुआ कर सकते हैं कि वह जो काम कर रहा है उसमें फले-फूले। भले ही सुरेंदर पर केस नहीं हुआ, लेकिन दयालु बाबू ने तो मुझ पर भी तो केस नहीं होने दिया। यही क्या कम है। युवक महंगी, किंतु टिकाऊ न्याय व्यवस्था में आस्था प्रकट करते हुए यह सोचते हुए अपने घर की तरफ चल देता है कि आखिर न्याय मिल ही गया।
  --डॉ रोशन रवि
(असिस्टेंट प्रोफेसर, के.डी.एस. कॉलेज,गोगरी, खगड़िया)
       
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