जिन्दगी की बंदगी, https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/blog-post18.html

                   जिन्दगी की बंदगी 



          महानगरों में जिंदगी बहुत तेज दौड़ती है। सबसे बड़ी बात इन तेज दौड़ती जिंदगियों में ब्रेक ही नहीं होती, इसलिए यह रुकती नहीं, लगातार चलती रहती है। विक्रम भी शहर में ही रहता है, इसीलिए उसकी जिंदगी में भी ठहराव नहीं है। सुबह में ऑफिस जाना और फिर शाम में वापस घर आ जाना ही विक्रम के लिए जिंदगी है। विक्रम एक मल्टीनेशनल कंपनी के  बड़े पद पर कार्यरत है और उसकी तनख्वाह किसी भी आम सरकारी नौकरी से बहुत ज्यादा है। विक्रम शहर में रहता है, इसलिए इतने बड़े पद पर होने के बावजूद उसे पड़ोसी भी नहीं जानते हैं। किसी गांव में होते तो शायद उसके नाम का डंका बजता। विक्रम गांव का ही रहने वाला है, लेकिन बरसों हो गए गांव का मुंह देखे।

                विक्रम सरकारी नौकरी करना चाहता था और अधिकारी बनना चाहता था, लेकिन सरकारी नौकरी में तो गांव-गांव की खाक छाननी पड़ती है। मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब लग जाने पर महानगरों में ही रह कर काम करना पड़ता है। विक्रम को पावर चाहिए था, पैसे की अहमियत उसके लिए उतनी ज्यादा नहीं थी, इसलिए वह सरकारी अधिकारी बनना चाहता था। उसके घर वालों को पैसा चाहिए था, पावर की आवश्यकता उसे नहीं थी, इसलिए वो विक्रम को मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने के लिए दबाव बना रहे थे। विक्रम के परिवार वालों का तर्क है था कि मल्टीनेशनल कंपनी में वातानुकूलित ऑफिस में रहकर काम करने का मौका मिलेगा और वहां भी अधिकारी बना जा सकता है। विक्रम के परिवार वालों को कौन समझाए कि बिना प्रजा के राजा होने का क्या फायदा? मल्टीनेशनल कंपनी के अधिकारी भी बिना प्रजावाले राजा होते हैं। दूसरी बात, कोई भी सफलता तभी पूर्ण मानी जाती है, जब कोई उसका गुणगान करें। गांव में यह सुविधा उपलब्ध है, जबकि शहर में जब कोई किसी को पहचानने के लिए ही तैयार नहीं, तो कोई किसी की सफलता का गुणगान कैसे करेगा? आखिरकार विक्रम अपनी इच्छाओं की तिलांजलि देता है तथा शहर की ओर रुख कर देता है।
                   परेशानियां बेशक इंसान को व्यथित करती है, इंसान को दुख देती है, लेकिन नए मार्ग का सृजन भी करती है और लोगों की जिंदगी में हलचल पैदा करती है। किसी के जीवन में हलचल उसके जीवन में नया मोड़ लाती है, ग्रामीण लोगों की जिंदगी ऐसी ही होती है। शहरी यंत्रवत, एकरस जिंदगी में कोई परेशानी भले ही ना हो, भले ही उसमें खुशियां ही खुशियां हो, लेकिन वह बोझिल प्रतीत होती है। कभी-कभी परेशानी की बड़ी वजह ना होने के कारण इंसान बेवजह भी परेशान होने लगता है। विक्रम की परेशानी का कोई कारण नहीं है, इसलिए वह बेवजह परेशान रहने लगा है। किसी अनिष्ट की आशंका उसे भयभीत करती है। यह आशंका विक्रम के मन में संचार माध्यमों से लगातार मिलने वाली मौत की सूचनाओं से पैदा होती है और फिर विक्रम के मन में यही सवाल होता है कि यदि उसके साथ कुछ अनिष्ट होता है, तो उसके परिवार का क्या होगा?
            जीने का मोह इंसान को पल-पल मरने का एहसास देती है। विक्रम भरपूर जिंदगी जीना चाहता है, लेकिन जी नहीं पाता है। रोज-रोज की होने वाली दुर्घटनाओं की सूचना विक्रम को अब डराने लगी है। अब वह दुर्घटनाओं से बचने के लिए हर काम सावधानी से करता है, लेकिन दुर्घटनाएं हमेशा अपनी ही गलती से नहीं होती है, बल्कि कभी-कभी दूसरों की गलती से भी किसी के साथ दुर्घटना हो जाती है। विक्रम के साथ भी यही हुआ। ऑफिस जाते समय एक व्यक्ति को बचाने की कोशिश में विक्रम भयंकर रूप से दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है। विक्रम ने पहली बार मौत को इतने करीब से देखा और जिंदगी के प्रति उसका नजरिया बदलने लगा। इंसान को मौत कब आएगी? यह कोई नहीं जानता और ना ही इस पर किसी का कोई बस चलता है, इसीलिए मौत से पहले मौत के खौफ से बार-बार मरना बुजदिली है, कायरता है,अपने आप के साथ अन्याय है, अपने परिवार के साथ अन्याय है। एक बार जब मौत का डर खत्म हो जाता है, तो इंसान का जिंदगी जीने का तरीका ही बदल जाता है।
            जिंदगी से हर किसी को प्यार है, लेकिन किसी चीज से इतना प्यार नहीं करना चाहिए, कि वह उसकी कमजोरी बन जाय। विक्रम भी अब इसे समझने लगा और मौत के खौफ से भी मुक्त हो गया।  विक्रम की जिंदगी पहले चल भले रही हो, लेकिन कहीं पहुंच नहीं पा रही थी। पहले जिंदगी का कोई मकसद नहीं था, इसलिए यह पता नहीं था चलकर जाना कहां है, लेकिन अब पता चल गया है कि सिर्फ जीने का नाम जिंदगी नहीं है, बल्कि कुछ कर गुजरने का नाम जिंदगी है।
                         विक्रम की जिंदगी अबतक जिंदा रहने के लिए थी, जीने के लिए नहीं। विक्रम को अब गांव की याद आती है। विक्रम के परिवार वालों को भी महानगर के अजनबीपन ने शहरी जिन्दगी से मोहभंग कर दिया। गांव में किसी के सामान्य बुखार की जानकारी लेने के लिए भी लोगों का तांता लग जाता था, लेकिन शहर के अजनबी माहौल में जिंदगी और मौत से लड़ने वाले इंसान की सुध लेने वाला भी कोई नहीं होता। परेशानियों से घिरे इंसान का केवल हालचाल पूछने वाला व्यक्ति भी उस इंसान के दिल में अपने लिए जगह बना लेता है। विक्रम के गांव की ओर रुख करने के पीछे भी शायद यही मंसा रही होगी।
              शहर में विशेष पद पर होते हुए भी वह सामान्य जीवन व्यतीत कर रहा था, जबकि गांव में सामान्य पद पर होते हुए भी वह विशेष जीवन व्यतीत करने लगा। गांव में अब वह बाबू साहब के पदनाम से जाना जाने लगा और यह पदनाम ना किसी सरकारी अधिकारी का पद नाम है और ना ही किसी मल्टीनेशनल कंपनी के अधिकारी का पद नाम है, बल्कि यह तो गांव के विकास में दिए जाने वाले योगदान के लिए गांव वालों के द्वारा विक्रम को दिया गया पदनाम है। विक्रम में गांव वालों के जीवन निर्वाह कृषि को व्यवसायिक कृषि में बदल दिया। अब गांव में खुशहाली है।
             विक्रम का जीवन अब सिर्फ उसका जीवन नहीं रह गया है, बल्कि उसका जीवन सामाजिक जीवन से जुड़ गया है। विक्रम अब भी भरपूर जिंदगी जीना चाहता है, लेकिन अब उसमें सिर्फ खुद के जीने का मोह नहीं है, बल्कि औरों की जिंदगी को भी सवांरने की चाहत है। विक्रम अब भी 'जिंदगी की बंदगी' करता है, लेकिन यह' जिंदगी की बंदगी' खुद के लिए नहीं है,बल्कि समाज के लिए है।
              --डॉ रोशन रवि
      (असिस्टेंट प्रोफेसर, के.डी.एस. कॉलेज, गोगरी, खगड़िया)

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  2. भारतीय इतिहास मे ऐसे अनेकों वीर एवम वीरांगनाओ की कथाएँ है जिन्हें सुनकर आज भी मन जोश से भर उठता है.आज हम ऐसे ही दो वीर भाई आल्हा-ऊदल की गाथा,आल्हा ऊदल की कहानी, आल्हा-ऊदल स्टोरी, आल्हा-ऊदल और पृथ्वीराज, आल्हा-ऊदल जंग की जानकारी लाए हैं.

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