हम क्या कम हैं?,The real story of Criminalization of politics and politicization of criminal,https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/real-story-of-criminalization-of28.html

https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/real-story-of-criminalization-of28.html                                                                                                         हम क्या कम हैं?

 The real story of Criminalization of politics and politicization of criminal     

           

                   'नेताजी अमर रहे... हिंदुस्तान जिंदाबाद... मुरारी गंज की जनता जिंदाबाद... जिंदाबाद, जिंदाबाद' की गूंज से समस्त मुरारी गंज की फ़िजा गुंजायमान है। आज मुरारी गंज के नए विधायक जयकांत सिंह का नागरिक अभिनंदन है। फूल मालाओं से लदे नेताजी के चेहरे से असीम खुशी की झलक दिखाई पड़ती है, जो छिपाए नहीं छिप रही। पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़े और विजयी भी हुए और वह भी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर। जय कांत ने कई बार विधायक रहे रंजीत सिंह को चुनाव में परास्त किया है। जयकांत इस  जीत का श्रेय मन ही मन अपने जात-बिरादरी के लोगों के साथ-साथ मदन सिंह को देते हैं। अभी राजनीति के कच्चे खिलाड़ी हैं, इसलिए ऐसा सोच रहे हैं,वरना नेता लोग किसी भी कार्य का श्रेय खुद लेते हैं, किसी को देते नहीं हैं। नेताजी खास होते हैं और जनता आम होती है । नेताजी की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि समाज में होने वाले किसी भी सही कार्य का श्रेय खुद ले और गलत कार्य का श्रेय औरों के मत्थे मढ़ दे, नहीं तो आजकल खास को आम होने में वक्त ही कितना लगता है।

                 मदन सिंह दियारा क्षेत्र का आतंक माना जाता है। जय कांत ने अपनी ही जाति के मदन सिंह से चुनाव जीतने के लिए मदद मांगी। जय कांत ने जीत के बाद मदन सिंह को हर प्रकार से सहायता देने का वचन दिया। जय कांत के विधायक बनने के बाद मदन के अपराधिक गतिविधियों में इजाफा होता है। पहले मदन कोई भी अपराध पुलिस से चोरी-छिपे करता  था, अब खुलेआम करने लगा। जिस जनता ने जय कांत को जीत दिलाने के लिए मदन से सहायता मांगी थी, वही जनता मदन के आतंक से आतंकित है। राजनीति के अपराधीकरण का दुष्प्रभाव पहली बार जनता ने देखा और उसे भोगा, जबकि नेताजी ने राजनीति के अपराधीकरण के सुखद प्रभाव को महसूस किया। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों राजनीति के अपराधीकरण को अपनी जीत सुनिश्चित करने का महत्वपूर्ण जरिया मानने लगे।
         मदन जिस जय कांत के बल पर अपराध कर रहा है, वही जय कांत खुद जनता के वोट पर निर्भर है। मदन सिंह जय कांत के गले की हड्डी बन चुका है, जिसे ना निगलते बनता है और ना ही उगलते बनता है। विधायक जय कांत ,मदन को फोन कर समझाने की कोशिश करता है-
जय कांत-मदन! तुम जो यह सब कर रहे हो, वह ना तुम्हारे लिए अच्छा है और ना मेरे लिए अच्छा है। आगे से अगर तुमने कोई अपराध किया, तो मैं तुम्हें कानूनी फंदे से नहीं बचा पाऊंगा(बीच में बात काटकर मदन कहता है)
मदन-क्या हो गया है नेताजी आपको? ना कोई हाल-समाचार , ना कुशल-मंगल पूछे, सीधे तिलमिलाने लगे।
जय कांत-तुम्हारी हरकतों से जनता में हमारी छवि खराब हो रही है और तुम कहते हो कि हम तिलमिला रहे हैं।
मदन-अच्छा अब हमारे कारण आप की छवि खराब हो रही है। अरे नेता जी, हमारे कारण तो आप की छवि बनी है। यह क्यों भूल जाते हैं आप। आपकी औकात तो मुखिया बनने के लायक भी नहीं थी, वह तो हम थे जो आप विधायक बन गए।
जय कांत( गुस्से में)-औकात की बात मत करो मुझसे। दो कौड़ी की गुंडे हो तुम और तुम इस क्षेत्र के विधायक से बात कर रहे हो। हम उस पद पर हैं, जहां तुम जैसे दो कौड़ी के गुंडे हमारे आवास के बाहर पहरेदारी करते हैं। अब हमें तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है। आगे से अगर कोई अपराध किया, तो सजा के लिए भी तैयार रहना।
             जय कांत ने पहली बार एक अनुभवी राजनेता की तरह 'यूज एंड थ्रो' की नीति अपनाई। मदन, जय कांत को विधायक के पद तक पहुंचाने का एक माध्यम था, जबकि इस क्षेत्र की जनता विधायक जी को अपने पद पर लगातार बने रहने का जरिया है, इसीलिए विधायक जी ने क्षेत्र की जनता के लिए मदन का त्याग कर दिया।
                  मदन सिंह ने जय कांत हो चुनाव जिताने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था, क्योंकि उसे एक मजबूत ढाल चाहिए था, जो उसके अपराधिक गतिविधियों का बचाव कर सकें और जयकांत को भी मदन जैसा आदमी चाहिए था, जो जनता को डरा-धमकाकर उसके पक्ष में मतदान करा सके।
        अब जयकांत के बातचीत के अंदाज और रहन-सहन में एक विधायक के रुतबे की झलक देखी जा सकती है, फिर भी जय कांत जनता के लिए कुछ-ना- कुछ करने की इच्छा रखता है, क्योंकि उनका राजनीति में प्रवेश उनके पूर्वजों की देन नहीं है, बल्कि यह उसकी खुद की कमाई है। वह जनता के बीच से आया है, इसलिए जनता के प्रति उसकी संवेदनाएं बनी हुई है। जय कांत ने अपने समर्थकों और अपने विरोधियों में कोई भेद नहीं रखा और सबके लिए समान रूप से कार्य किया। विधायक जी को उम्मीद थी कि हमारे समर्थक तो हमें वोट देते ही हैं, काम के बल पर हम विरोधियों का भी वोट हासिल कर सकते हैं। लेकिन सिर्फ जनता के लिए काम करने से ही चुनाव नहीं जीते जाते। कम से कम आज के जमाने में तो बिल्कुल भी नहीं।
                वर्तमान राजनीति में राज करने के लिए नीति बनाई जाती है, काम करने के लिए नहीं और इस नीति को बनाने के लिए अनीति के सारे हथकंडे अपनाए जाते हैं। विधायक जी को इसका अनुभव नहीं था, लेकिन उसके अनुभवी सलाहकार विधायक जी को सलाह देते हुए कहते हैं-
   सलाहकार- सर, सिर्फ काम करने से जनता वोट नहीं देती है। जाति समीकरण को देखना पड़ता है। विरोधियों के सही काम को गलत साबित करना पड़ता है और खुद के गलत काम को भी सही साबित करना पड़ता है। झूठ बोलना पड़ता है। अफवाह फैलाया जाता है, तब जाकर जनता को अपने पक्ष में किया जाता  है।
  विधायक जी- इस क्षेत्र की जनता के लिए काम तो हम कर ही रहे हैं और जहां तक जाति समीकरण की बात है। इस विधानसभा में हमारे जाति के लोग भी बहुत ज्यादा है और हमारे पक्ष में भी है।
  सलाहकार-  क्षेत्र में हमारी जाति के लोग हैं और अब तक हमारे समर्थक भी हैं, लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि यह अगले चुनाव तक हमारे समर्थक बने रहेंगे। कहीं अपनी ही जाति से कोई अन्य उम्मीदवार चुनाव लड़ गया तो वोट का तो बंटवारा हो जाएगा। और अब मदन भी तो अपना विरोधी हो गया है। उसका प्रभाव दियारा क्षेत्र के मतदाताओं पर अभी भी है। अगर काम के आधार पर ही वोट मिलता तो आप तो पहली बार विधायक बने हैं और पहले तो आपने क्षेत्र की जनता के लिए कुछ भी नहीं किया, फिर भी आपको कैसे वोट मिल गया? आप अगर चुनाव जीते हैं तो सिर्फ और सिर्फ जाति समीकरण तथा मदन के आतंक की बदौलत।
  विधायक जी-अरे मदन की बात छोड़ो। हम कोई दूसरा मदन तैयार कर लेंगे।
   सलाहकार-हम मदन जैसा कोई दूसरा तैयार कर लेंगे, तो भी इसकी क्या गारंटी है कि जनता उसके के डर से हमारे पक्ष में मतदान करेगी? और जहां तक आपके द्वारा किए जाने वाले कार्य की बात है, तो उसे जनता बहुत दिनों तक याद नहीं रखती है, इसलिए आप जनता से झूठे वादे करना सीखिए। किसी और के कार्य को भी खुद का कार्य बता कर जनता का विश्वास हासिल कीजिए।
   विधायक जी-हम जनता के विश्वास को नहीं तोड़ सकते हैं।
    सलाहकार-हम केवल आपको जनता का विश्वास हासिल करने के लिए कह रहे हैं। जनता का विश्वास हासिल करने के लिए आप में राजनेता का वो गुण होना चाहिए, जिसमें राजनेता अपने आदमियों से पहले आग लगवाते हैं, फिर उसे बुझाने खुद पहुंचते हैं और इस आगजनी की घटना को विरोधियों का षड्यंत्र बताकर जनता की सहानुभूति हासिल कर लेते हैं तथा अपने समर्थकों द्वारा इसे जोर-शोर से प्रचारित करवाते हैं।
           गलत तरीके से विधायक पद पर पहुंचकर सही सही काम करने की इच्छा रखने वाला जय कांत अपने विरोधियों का विश्वास तो हासिल नहीं ही कर पाया। उसके समर्थकों का विश्वास भी उससे उठता चला गया, क्योंकि उसके समर्थक सिर्फ अपनी जाति के लोगों का कार्य करने का दबाव बनाते थे, लेकिन विधायक जी पूरे क्षेत्र की जनता का कार्य करने में दिलचस्पी दिखाते थे।
         विधानसभा चुनाव का समय आ गया।चुनाव में जय कांत और पूर्व विधायक रंजीत सिंह के बीच कड़ा मुकाबला है।जय कांत ने चुनाव प्रचार के दौरान केवल अपने कार्यों को गिनाया, लेकिन अपने प्रतिद्वंदी पर कोई आरोप-प्रत्यारोप नहीं लगाया और ना ही जनता के सामने उसकी छवि को धूमिल करने का प्रयास किया। पूर्व विधायक रंजीत सिंह राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी हैं। उन्होंने मदन को अपने पक्ष में किया और फिर मदन का सहारा लेकर दियारा क्षेत्र के मतदाताओ को अपने पक्ष में किया। साथ ही साथ रंजीत सिंह ने जयकांत के जातीय समीकरण को भी तोड़-मरोड़कर मदन की सहायता से अपने पक्ष में करने का भरपूर प्रयास किया। जय कांत को उसकी औकात बताने के लिए ही इस चुनाव में मदन ने रंजीत सिंह का दुगुने उत्साह के साथ सहयोग किया।
           सच्चाई जिस रफ्तार से इस समाज में फैलती है, उससे दोगुनी रफ्तार से अफवाह समाज में फैल जाया करती है। इंसान का कान वही सुनना पसंद करता है, जिसमें उसकी तारीफ हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तारीफ सच्ची है या झूठी। समाज में चापलूस और चाटुकारों की बढ़ती तादात की वजह भी यही है और आफवाहों के तेजी से फैलने का कारण भी यही है। चुनाव जीतने में अफवाहों की बड़ी भूमिका होती है और आफवाह फैलाने के लिए झूठे लोगों की आवश्यकता होती है। जय कांत के पास चापलूसों, चाटुकारों और झूठे लोगों की कमी है, जबकि रंजीत सिंह ने अपनी राजनीतिक परिपक्वता के कारण अपने पीछे चापलूसों, चाटुकारों और झूठे लोगों की भीड़ खड़ी कर दी है और इसी भीड़ ने इस चुनाव में रंजीत सिंह का पलड़ा भारी कर दिया है। जय कांत के खिलाफ मदन का आक्रोश भी रंजीत सिंह के लिए काफी फायदेमंद है।
                जय कांत चुनाव हार जाते है और हारने के बाद जय कांत को पहली बार यह एहसास होता है कि राजनीति राज करने के लिए होता है काम करने के लिए नहीं। रंजीत सिंह चुनाव जीतते हैं। रंजीत सिंह के जीतने पर सबसे ज्यादा खुशी मदन को होती है, क्योंकि रंजीत सिंह के रूप में उसे फिर से राजनीतिक सुरक्षा कवच प्राप्त हो गया। रंजीत सिंह को पाँच वर्ष के बाद फिर से विधायक बनने का मौका मिला, इसलिए उसमें शुरुआती दो वर्षों तक उसने मदन के अपराधों को संरक्षण प्रदान किया और उसकी पैरवी की, लेकिन धीरे-धीरे रंजीत ने भी मदन से दूरी बनानी शुरू कर दी और उसकी पैरवी में टालमटोल करने लगे।
             हिंदुस्तान में ईमानदार और सख्त पुलिस वालों की कमी नहीं है। इस क्षेत्र के नए इमानदार डी.एस.पी. साहब ने अपराधों पर अंकुश लगाना शुरू कर दिया। मदन सिंह ने रंजीत सिंह से मदद की गुहार लगाई। रंजीत चाह कर भी मदन सिंह की मदद नहीं कर पाया और मदन को दियारा छोड़कर भागना पड़ा। दो चुनावी गतिविधियों में प्रत्यक्ष हिस्सा लेने की वजह से राजनीतिक चालबाजियों से भी वाकिफ हो गया था। मदन यहां-वहां भटकता रहा।भागते-भागते मदन का शरीर तो थक गया, लेकिन उसके दिमाग ने चलना शुरू कर दिया कि अपराधियों के लिए नेताओं का संरक्षण आवश्यक है, लेकिन ये नेता लोग तो मौकापरस्त होते है। किसी भी नेता पर विश्वास नहीं किया जा सकता है।
          मदन को अब समझ में आने लगा कि नेता लोग तो हम जैसे लोगों का इस्तेमाल कर अपना हित साधते हैं और हमारे जरूरत के समय हमें बीच मँझधार में छोड़ देते हैं। मदन को अब समझ में आने लगा है किसी भी व्यक्ति को जीत दिलाने वाला इंसान गुमनाम हो जाता है, जबकि जिस व्यक्ति को जीत दिलाई जाती है, उसका बड़ा नाम हो जाता है। मदन सिंह अपने किसी खास व्यक्ति को राजनीति में लाना चाहता है, लेकिन इंसानी मिजाज कब बदल जाए और कब कोई अपना पराया हो जाए यह कोई नहीं जानता और इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि अपने जिस खास आदमी को चुनाव मैदान में उतारा जाएगा, वह जीत हासिल करने के बाद पलटी नहीं मारेगा।
           मदन खुद चुनाव मैदान में आने के बारे में सोचने लगता है-'मेरे ऊपर तो कई आपराधिक मामले दर्ज हैं और भविष्य में सजा भी हो सकती है, तो फिर क्या किया जाए। ऐसा कौन सा आदमी है जिस पर विश्वास किया जाए।' काफी माथापच्ची के बाद वो अपनी पत्नी रेखा को चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी करता है, क्योंकि पत्नी के चुनाव जीतने के बाद विधायक के अधिकारों का वास्तविक उपयोग तो वह स्वयं ही करेगा। किसी और व्यक्ति पर भरोसा भी तो नहीं किया जा सकता है। रेखा पर कोई आरोप भी नहीं है। महिलाओं की सहानुभूति भी मिलेगी और बांकि काम हम जनता को डरा-धमका के कर लेंगे। जब हम खुद अपने दम पर दो विधायक बना सकते हैं, तो खुद भी तो विधायक बन सकते हैं। हम क्या कम हैं? जो विधायक नहीं बन सकते हैं। जरूर बन सकते हैं और बन कर ही रहेंगे। मदन का यह फैसला अपराधी के राजनीतिकरण का नया अध्याय शुरू कर देता है, हालांकि उसकी पत्नी अपराधी नहीं है, लेकिन अपराधी के साथ रहकर, उसे अपराध करने से ना रोकना, उसे सही राह ना दिखाना, चुप रह जाना भी अपराध है।
           मदन सिंह ने तय कर दिया कि उसकी पत्नी रेखा ही अगले विधानसभा चुनाव में अपना किस्मत आजमाएगी। चुनाव में अभी दो साल बांकी है, तब तक मदन ने विनम्रता से जनता को अपने पक्ष में करने की कोशिश करने लगा। मदन समझ गया कि जहां मीठी बोली से काम हो जाए वहां गोली का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और जब गोली की आवश्यकता होगी तो उसका इस्तेमाल भी किया ही जाएगा।मदन ने अपनी पत्नी को चुनाव जिताने के लिए सारे हथकंडे का इस्तेमाल कर दिया और आखिरकार अपनी पत्नी को मुरारी गंज का विधायक बना ही दिया। लोकतांत्रिक चुनाव पद्धति में मदन की पत्नी ने जनता के मतदान से चुनाव में विजय हासिल की है, लेकिन यह आधा सच है, क्योंकि अधिकांश जनता के द्वारा मत का दान स्वेच्छा से नहीं किया गया था, परंतु जीत तो जीत होती है, इसे सब को स्वीकार करना ही पड़ेगा।
          अपराधी मदन को तो अपनी ताकत का एहसास हो गया कि' हम क्या कम हैं', लेकिन मुरारी गंज की जनता इतनी छोटी सी बात को क्यों नहीं समझ रही है? क्यों जनता को अपनी एकता की ताकत पर विश्वास नहीं है? जनता के मन में यह सवाल क्यों नहीं आ रहा है 'हम क्या कम हैं?'
          --  डॉ रोशन रवि
(असिस्टेंट प्रोफेसर, के.डी.एस. कॉलेज, गोगरी, खगड़िया)
https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/real-story-of-criminalization-of28.html

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जिन्दगी की बंदगी, https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/blog-post18.html

लॉक डाउन पर सवाल, https://rroshanravi.blogspot.com/2020/04/blog-post29.html

मुस्कुराता चेहरा https://rroshanravi.blogspot.com/2022/02/blog-post.html

गोबर की पुनर्स्थापना https://rroshanravi.blogspot.com/2022/04/blog-post.html

मनतंत्र type of democracy https://rroshanravi.blogspot.com/2021/05/type-of-democracy.html

खामोशी में हलचल,https://rroshanravi.blogspot.com/2020/05/blog-post.html

खगड़िया की बोली (ठेठ हिंदी) https://rroshanravi.blogspot.com/2022/01/blog-post.html

सवाल जबाव the real situation of Biharhttps://rroshanravi.blogspot.com/2021/05/blog-post.html

हिंदी विषय में रोजगार की संभावना Job prospects in Hindi https://rroshanravi.blogspot.com/2021/05/job-prospects-in-hindi.html

ताजा खबरhttps://rroshanravi.blogspot.com/2020/07/blog-post.html