हिंदुस्तान में लॉकडाउन के गहराते प्रभावhttps://rroshanravi.blogspot.com/2020/12/post.html

   हिंदुस्तान में लॉक डाउन के गहराते प्रभाव

                                                  



                                                          "    सन्नाटा है सड़कों पर और लोगों में खामोशी।

                                                       वीराने इस हालत का अब कहो कौन है दोषी।।"

      कोविड-19 के संक्रमण से मौत का गमज़दा कोलाहल ना हो, इसीलिए यह सन्नाटा और खामोशी हमारे देशवासियों के लिए नितांत आवश्यक है। हमें अपने सुरक्षित भविष्य के लिए हमें खुद लॉक डाउन का सख्ती से पालन करना होगा तथा अन्य लोगों को भी संचार माध्यमों के द्वारा लॉक डाउन का पालन करने के लिए जागरूक बनाना होगा। सोशल डिस्टेंस बनाए रखना होगा ,साथ ही साथ वे सारे जरूरी एहतियात बरतने होंगे जो सरकारी आदेशों और निर्देशों में शामिल होगा।

               कोविड-19 को रोकने के लिए सरकार के द्वारा जो राष्ट्रीय स्तर पर लॉक डाउन किया गया है , उसने मानव सामुदाय को कई स्तरों पर प्रभावित किया है। लोग अपने अपने घरों में हैं तथा सड़कों पर वाहनों का आवागमन बंद है जिसके परोक्ष प्रभाव के रूप में हमें चारों तरफ स्वच्छता दिखाई पड़ती है ,जिससे पर्यावरण प्रदूषण का स्तर बहुत हद तक कम होने की संभावना है। प्रदूषण में कमी के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है खासकर बुजुर्ग व्यक्ति के स्वास्थ्य पर। सरकार द्वारा लागू किए गए लॉक डाउन के प्रभावों पर गौर किया जाए तो इससे कोविड-19 जैसे खतरनाक वायरस जनित बीमारियों से तो सुरक्षा प्रदान की ही जा रही है साथ ही साथ परोक्ष प्रभाव के तौर पर पर्यावरण प्रदूषण में भी कमी आई है जो कि शहरी परिवेश में रहने वाले लोगों के लिए भी लाभदायक है।

            लॉक डाउन ने लोगों को मनोवैज्ञानिक रूप से भी प्रभावित किया है। शहरी परिवेश के भीड़ भाड़ में चलते चलते काम करते-करते लोगों के शरीर के साथ साथ मन और दिमाग भी थक जाता था जिससे लोगों में चिड़चिड़ापन अकेलापन अवसाद इत्यादि की भावना का विकास होने लगा था। लॉक डाउन में पूरी तरह से आराम मिलने के कारण लोगों को एक नए सिरे से सोचने समझने का मौका मिला। मानसिक तनाव कम हुआ। अपने परिवार को समझने का मौका मिला। कार्यबोझ के कारण जो पारिवारिक लोगों से जो भावना के स्तर पर भी दूरियां बन गई थी, वह अब कम होने लगी है। इसका नकारात्मक प्रभाव यह पड़ा लोग पूरी तरह से कार्यबोझ से मुक्त हो गए हैं जिससे लोगों में मनोवैज्ञानिक विकृतियां आने की संभावना भी बढ़ गई।

          लॉक डाउन ने भारतीय राजनीति को भी प्रभावित किया है। पहली बार भारतीय राजनीति में किसी मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों का मत एक है। यह भारतीय राजनीति के लिए सकारात्मक संदेश है कि संकट के समय में सभी राजनीतिक दल राजनीतिक विचारधारा और लाभ की राजनीति से इतर देश और देशवासियों के लिए एकजुट होकर संकट का सामना करने की हिम्मत रखते हैं। भिन्न-भिन्न विचारधारा के कई पार्टियों वाले इस देश में किसी एक मुद्दे पर सभी पार्टियों का एकजुट हो जाना इस देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था को भविष्य में और भी मजबूती प्रदान करेगा।

            लॉक डाउन में सामाजिक प्रभाव भी उत्पन्न किया है। अमीरी गरीबी का विभाजन प्रत्यक्ष रूप से दिखाई पड़ रहा है। धनवान लोग तो अपने घर पहुंच चुके हैं या वो जहां भी हैं अपने लिए सारी व्यवस्थाएं कर लिए है, जिससे उसे ज्यादा परेशानी का सामना नहीं  करना पड़ रहा है लेकिन जो रोज कमाने खाने वाले लोग हैं उस पर इस लॉक डाउन का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। उसके सामने रोटी की समस्या उत्पन्न होने लगी है। हालांकि सरकार इस समस्या के समाधान का हर संभव प्रयास कर रही है।लॉक डाउन के तहत किए जाने वाले स्वैच्छिक  सोशल डिस्टेंस का सामाजिक प्रभाव यह है लोग शरीर से तो दूरी बनाए हुए ही हैं साथ ही साथ एक दूसरे से भावनात्मक दूरी भी बनती जा रही है, जिससे लोगों के अलगाव की प्रवृत्ति में इजाफा हो सकता है।


          लॉक डाउन का सबसे ज्यादा प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। भारतीय अर्थव्यवस्था श्रम प्रधान अर्थव्यवस्था है। लोगों का श्रम संबंधी क्रियाकलाप ठप होने से अर्थव्यवस्था नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकती है। गरीबी और बेरोजगारी की समस्या बढ़ सकती हैं, जो कई अन्य अप्रत्यक्ष समस्याओं को बढ़ाएगा।

        कोविड-19 के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए सरकार के द्वारा जो उपाय किया है उसका सांस्कृतिक प्रभाव यह है कि लोग हाथ जोड़कर प्रणाम करने की आदत सीखने लगे हैं, जो भारतीय संस्कृति और संस्कार का एक हिस्सा है।       

           लॉक डाउन के दौरान निष्ठा पूर्वक अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने वाले पुलिस अधिकारियों की पूरे देश में वाह-वाह हो रही है, जबकि कोविड-19 संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए दिन- रात एक करने वाले डॉक्टरों को' इंसानी खुदा' के सम्मान से नवाजा गया, जबकि पुलिस और डॉक्टरों की निष्ठा पर बार-बार सवाल उठाए जाते रहे हैं।

               लॉक डाउन का उल्लंघन होने की स्थिति में कानूनी कार्रवाई के डर से तथा कोविड-19 के संक्रमण के फैलने के डर से  ग्रामीण परिवेश में बात बात पर होने वाली हाथापाई में भी बहुत हद तक कमी आई है और लोगों के हिंसात्मक प्रवृत्ति पर भी बहुत हद तक अंकुश लगा है । आपके साथ सांप्रदायिक सौहार्द में इजाफा हुआ है तथा जातीय झगड़े में कमी आई है और हिंदुस्तान का एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारी यह दिली इच्छा है कि यह स्थिति इस देश में सदैव बनी रहे।


                                    --  डॉ रोशन रवि,

 विभागाध्यक्ष हिंदी विभाग, के.डी.एस. कॉलेज, गोगरी, मुंगेर विश्वविद्यालय, मुंगेर।



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