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     कहीं वो कोरोना  वायरस संक्रमित तो नहीं था?




भरी दोपहर में लॉक डाउन के पसरे हुए सन्नाटे के बीच सुनसान सड़कों से तीन आदमी बड़ा-सा ट्रेवल बैग लिए निकलताहै।सड़क से सटे स्कूल की तरफ इशारा करते हुए उन तीनों में से एक मुसाफिर कहता है -यही स्कूल है। सन्नाटे ने उस व्यक्ति की सामान्य आवाज को भी पास के घर में खामोशी से बैठे रवि को झरोखे से सड़क की ओर देखने के लिए मजबूर करता है। जब तक रवि झरोखे से बाहर झांकता है,तब तक यह तीनों मुसाफिर उनकी नजरों से बहुत दूर जा चुके होते हैं, लेकिन उन तीनों मुसाफिरों के पीठ में टंगा हुआ बड़ा-सा ट्रैवल बैग रवि के मन में हलचल पैदा कर देता है। कई सवाल एक साथ उसके मन में आते हैं 'वह आदमी कौन था?' , 'उसके पीठ पर बड़ा सा ट्रेवल बैग टंगा था, कहीं वह दूर से सफर करके तो नहीं आ रहा था?' , 'कहीं वह दूसरे राज्यों से काम करके तो नहीं आ रहा था?', 'उनकी आदतें तो मजदूरों वाली थी, कहीं वह दिल्ली से कमाकर तो नहीं आ रहा था' और इन सभी सवालों के अंत में सबसे अहम सवाल जो इस समय का सबसे प्रासंगिक सवाल भी है-'कहीं वो कोरोना संक्रमित तो नहीं था'


                              रवि एक बार फिर अपने मन को समझाता है-'सभी लोग कोरोनावायरस संक्रमित थोड़े ही होते हैं'। यह भी तो हो सकता है कि वह यहीं कहीं से आया हो, इस तरह किसी पर शक करना अच्छी बात थोड़े ही हैं। पर अभी के हालात में कोरोना इस  कदर रवि के दिलो- दिमाग पर हावी है कि रवि फिर से उन तीनों मुसाफिरों के बारे में सोचने लगता है कि वह दूसरे राज्य से भले ही ना आया हो, लेकिन कोरोनावायरस संक्रमण तो अपने राज्य के कई जिलों में भी फैल गया है, इसलिए ऐसे मामलों में लापरवाही अच्छी बात नहीं है, क्योंकि हो सकता है वह व्यक्ति कोरोनावायरस संक्रमित ही हो? उसने क्या-क्या छुआ होगा, किस-किस व्यक्ति के संपर्क में आया होगा, कुछ पता नहीं। अभी तो इस बीमारी का इलाज भी नहीं निकला है और इस पर रिसर्च अभी चल ही रहा है। हो सकता है यह बीमारी हवा से भी फैलता हो? डॉक्टरों ने तो ऐसा नहीं कहा है ,लेकिन क्या पता अभी तक तो इसके बारे में पूरी जानकारी भी तो नहीं है और इन मजदूरों का भी कोई भरोसा थोड़े ही हैं, किस को छू दे? कहां चले जाएं?
                  रवि के भीतर अब मुसाफिरों की प्रति गुस्सा उबाल मारने लगता है और अपनी भौंहें तानकर सोचने लगता है-इन भिखारियों को गांव में मजदूरी करने को कहो तो नानी मरती है, तब इन भिखारियों के लिए दिल्ली पंजाब में ही सब कुछ रखा रहता है, वहीं कमा कर ये टाटा बिरला हो जाएंगे और अब, जब कोरोनावायरस का संक्रमण फैल रहा है तो कहते हैं गांव में ही मरेंगे।मरना ही है तो वहीं मरो।कहते थे गांव में क्या रखा है? दिल्ली में सब कुछ है। अब दिल्ली  में ही रहो। अब गांव आकर क्या करोगे? अपने तो मरोगे दूसरों को भी मारोगे। दिल्ली पंजाब में काम करने वाले मजदूर के चक्कर में गांव के गांव उजड़ जाएगा।
             गुस्से में थोड़ी नरमी आने पर रवि फिर सोचता है कि अब तो वह चला गया, लेकिन चाहते तो उन लोगों को पकड़ जरूर लेते। क्या पता कहीं कोरोना संक्रमित व्यक्ति ही होता तो लेनी का देनी पड़ जाता। अच्छा किए जो उसको जाने दे दिया, लेकिन उसके बारे में पता तो करना पड़ेगा कि वह कहां से आया था और कहां जा रहा था कोरोनावायरस संक्रमित था कि नहीं था?
          रवि अब आसपास के गांव टोले के जान पहचान वाले लोगों से मोबाइल के माध्यम से पता लगाने की कोशिश करता है। पास के गांव के ही सोनू ने बताया कि आज दिल्ली से 6 मजदूर छुपते छुपाते गांव में एक घंटा पहले आया हैं। रवि, सोनू से पूछता है-
रवि- 'वह सारे मजदूर घर के अन्दर चले गए या घर के बाहर ही हैं।'
सोनू-'नहीं, सब को उसके सामान के साथ गांव के बाहर ही रखे हैं और सब के नहाने-खाने का इंतजाम भी बाहर में ही है उसको पत्तल में खाना देंगे और बाहर में ही एक अलग बाल्टी साबुन दे देंगे।'
रवि-'उन सभी का चेकअप करवाए कि नहीं'
सोनू-'नहीं, नहाने खाने के बाद उन सब को भेजेंगे हॉस्पिटल'
रवि-'उन लोगों को तो गांव के भीतर बिल्कुल नहीं आने दीजिएगा, क्योंकि संक्रमण का पता चार-पांच दिन के बाद चलता है और उसके साथ जो हॉस्पिटल जाएगा, उसको भी कहिएगा उससे चार-पांच मीटर दूर ही रहे और मास्क लगा कर जाए। उसके सामान को भी बाहर ही रखिएगा घर में तो बिल्कुल नहीं। कोई पता थोड़े ही  है बैग में ही बीमारी लेकर आया हो।'
सोनू-'कहीं सामान कोई चुरा लेगा तब'
रवि-'लोग अपना जान बचा रहा है,उसका सामान कौन चुराएगा?
आप भी जैसा बात करते हैं कि क्या कहें(थोड़ा मुस्कुराकर)
सोनू-'अच्छा उसको छोड़िए, आपके तरफ कोई बाहर से कमा कर नहीं आया है न'
रवि-'फोन तो हम इसीलिए न किए थे कि 3 आदमी हमारे सड़क से होकर गुजरा था। कहीं वही सब तो नहीं था।'
सोनू-'नहीं, वो सभी चौक से होकर आया था, आपके गांव से नहीं आया था।
एक बात और पूछना था आपसे?'
रवि-'क्या?'
सोनू-'आज सुबह में एक-दो बार खांसी हो गया था, कहीं वही सब बात तो नहीं है'
रवि-'कौन, वही सब बात'
सोनू-'वही जो अभी चल रहा है, खांसे से तो एक-दो बार ही थे, लेकिन फिर भी शक तो हो ही जाता है'
रवि-'तो क्या करें पुलिस को फोन कर दें, इलाज करवा देगा'
सोनू-'अरे नहीं, वो बात नहीं है, आपको ऐसे ही बता दिए और खांसी वाला बात किसी को बताइएगा नहीं, नहीं तो गांव में हल्ला हो जाएगा। सुनते हैं पुलिस तो एंबुलेंस के साथ ही चलती है, जिस पर शक होता है उसको एंबुलेंस में ठुंस देती है। सुने हैं पुलिस तो अभी एक लाठी से एक ही आदमी को मारती है, वह भी सैनिटाइज करके।'
रवि-'हा हा हा हा, तो उन लोगों को काहे अस्पताल भेजें'
सोनू-'उसमें और हम में फर्क है भाई । वह तो दिल्ली से आया था और हम तो जब से कोरोनावायरस के बारे में सुने हैं, तब से तो घर से भी बाहर नहीं निकले हैं।'
         रवि सोनू से बात करने के बाद कई और लोगों से बात करता है लेकिन उसे पता नहीं चल पाता है कि वो तीनों मुसाफिर कौन थे और कहां गए?रवि ने घर,घर के पास का सड़क आदि जगहों को सैनिटाइज तो कर दिया ,लेकिन फिर भी उसके मन से यह डर नहीं निकल पा रहा था कि-'कहीं वो कोरोना वायरस संक्रमित तो नहीं था?'
                                                                                     

                                                                                         ---  डॉ रोशन रवि
                                                                (असिस्टेंट प्रोफेसर, के.डी.एस. कॉलेज ,गोगरी, खगड़िया)
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टिप्पणियाँ

  1. बहुत बढ़िया सर, अच्छी कहानी है

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  2. यह कहानी कोरोना से लोगों में व्याप्त मनोवैज्ञानिक डर को दर्शाता है।

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  3. बहुत सुंदर प्रयास रोशन जी इसी तरह लिखते रहिए

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